देख तेरे संसार की हालत क्या हो गयी भगवान, कितना बदल गया इंसान


इटावा:- देश और दुनियाँ मे पिछले तीन महीने से पैर पसारती चली आ रही कोविड-19 वायरस महामारी से लोग इस कदर खोफजदा है कि अपने भी पराये होते नजर आने लगे और एक दूसरे से दूरियाँ बढ़ाते नजर आ रहे है। ऐसा ही एक मामला इटावा सदर तहसील के बढ़पुरा ब्लॉक की विजयपुरा ग्रामपंचायत के गाँव हरदासपुरा का है जहां पिछले 14 दिनो से गाँव का दामाद सर्वेश अपनी पत्नी अंजू और बच्चियों के साथ सड़क किनारे पेड़ के नीचे पल्ली डाले अपने क़वारनटीन होने के दिन गुजारने के साथ जेहन में गुनगुनाता हुआ कहता है कि "चल उड़ जा रे पंछी के अब यह देश भी हुआ बेगाना" पिछले 15 और 16 मई को गाँव के लगभग 12 लोग अहमदाबाद, फरीदाबाद और उत्तराखंड के प्रवासी मजदूर अपने देश जब वापस आये तो गाँव की आशा और प्रधान के गाँव मे क़वारनटीन सेंटर न होने की वजह से गाँव में नही घुसने दिया, 16 मई को सभी लोगो की जिला अस्पताल में थर्मल स्क्रीनिंग होने के बाद अस्पताल के अधिकारी ने 14 दिन के लिये होम क़वारनटीन के लिए लिख दिया, गाँव की आशा ने 1 महीने का गाँव के घरों के क़वारनटीन होने का नोटिस चस्पा कर दिया लेकिन कोई भी प्रवासी गाँव मे प्रवेश नही कर सका, कल शाम जब इण्डिया बिलिब टूडे न्यूज़ टीम हकीकत देखने पहुँची तो तेज हवा आँधी और पानी मे यह प्रवासी पल्ली और चारपाई डाले बैठे थे, 10 किलोमीटर के क्षेत्र में कोई क़वारनटीन सेंटर नही फरीदाबाद से अपने देश वापस आये प्रवासी मजदूर देव सिंह कहते है कि प्रधान ने बताया कि हमको किसी अधिकारी ने क़वारनटीन सेंटर बनाने की बात नही बोली जबकि गाँव के अंदर प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालय मौजूद है, देव सिंह कहते है कि किसी गाँव वालो ने हमको नही घुसने ऐसे दूर भागते है जैसे हम छुआछूत हो, सरकार भी कोई मदद नही कर रही इससे बढ़िया तो हम बाहर प्रदेश में ही सही थे। दामाद भी हुये अभी ससुराल से बेगाने सर्वेश अपने परिवार के साथ पेड़ के नीचे छाँव में एक गीत जरूर गुनगुनाने को मजबूर है "सूरज ना बदला, चाँद न बदला, ना बदला रे आसमान कितना बदल गया इंसान "महामारी ऐसी फैली की दहशत में अपना प्रवासियों को अपने देश के लोग भी बेगाने नजर आने लगे है, गाँव वाले खाना भेजकर अपनी जिम्मेदारी तो निभा रहे है लेकिन गाँव की सीमा अपनी क़वारनटीन खत्म होने तक अभी सील है।।। गाँव वाले भी अपनो से मिलने को बेकरार तो है लेकिन बीमारी यह जरूर उनसे कहलवा रही है कि "खत्म हुये जब दिन उस डाली के जिस पर तेरा बसेरा था" 


इटावा रिपोर्टर:- अरशद जमाल