रेलवे ट्रैक पर कॉशन की भरमार, ट्रेनें कैसे पकड़ेंगी 120 की रफ्तार


बरेली:- जहां एक ओर दिल्ली-लखनऊ रेल रूट पर 120 की रफ्तार से गाड़ियां चलाने को आरडीएसओ की टीम लगाकर ट्रायल कर रही है। करीब दस दिनों से टीमें बरेली जंक्शन पर जुटी हैं। अगर स्टेशन मास्टर ऑफिस में कॉशन बोर्ड पर नजर दौड़ाई जाए तो लगेगा कि रेलवे ट्रैक पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा। मुरादाबाद से आलमनगर तक अप-डाउन में कॉशन की बात करें तो पांच से 10 किलोमीटर की दूरी में एक कॉशन लगा है। कॉशन वाले स्थान पर गाड़ियों को 30 से 40 की रफ्तार से गुजारा जाता है। हालांकि रेल अधिकारियों का कहना है, मुरादाबाद डिवीजन में कमजोर ट्रैक को मजबूत करने को टेक्निकल परीक्षण किया जा चुका है। ट्रैक को फरवरी से मार्च तक ठीक कर दिया जाएगा। ठंड और कोहरा के बाद मार्च से गाड़ियों की रफ्तार बढ़ाने की तैयारी है। 


रेल में क्या है कॉशन 
भारतीय रेल इन दिनों कॉशन पर चल रही है। यही वजह है गाड़ियां तीन घंटे के सफर को पांच-पांच घंटे में पूरा करती हैं। लोको पायलट भी क्या करें। रेल कागजों में गाड़ियों की रफ्तार 60-80 किलोमीटर प्रतिघंटा दिखाई जाती है, जबकि हकीकत कुछ और ही है। जहां पर ट्रैक कमजोर होता है। वहां पर कॉशन का आदेश रहता है। यानि स्टेशन मास्टर या रेल क्रासिंग से लोको पायलट को आगे कॉशन होने की जानकारी दी जाती है। पोल संख्या के पास गाड़ी को इतनी रफ्तार से निकाला जाएगा। हर पांच से दस किलोमीटर पर एक कॉशन लगा है।


जंक्शन पर दो किमी एरिया में पांच कॉशन
जंक्शन के कॉशन बोर्ड में दो किलोमीटर के एरिया में चार जगह पर कॉशन लगे हैं। जहां पर गाड़ियों को 10 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से निकाला जाता है। मुरादाबाद से आलमनगर तक 43 जगह कॉशन लगे हैं। ऐसे में लोको पायलट इस जर्जर ट्रैक पर 120 किलोमीटर प्रतिघंटा से गाड़ियां कैसे चलाएंगे। ब्रांच लाइन का भी यही हाल है। रामगंगा से आंवला, चंदौसी तक 15 से  20 जगह कॉशन लगे हैं।।


बरेली ब्यूरो:- कपिल यादव