पितृ पक्ष में इन बातों का रखें विशेष ध्यान - जानिए श्राद्ध तिथियां


रुड़की:- हिंदू कैलेंडर के अनुसार पितृ पक्ष अश्विन मास के कृष्ण पक्ष में पड़ते हैं। इस महीने की शुरुआत पूर्णिमा तिथि से होती है और इसकी समाप्ति अमावस्या पर। इस बार पितृ पक्ष 14 सितंबर से शुरु होकर 28 सितंबर तक रहेंगे। पितृ पक्ष के दौरान कोई भी नया काम शुरु नहीं किया जाता और ना ही नए वस्त्रों की खरीदारी होती है।


श्राद्ध तिथियां….
13 सितंबर- पूर्णिमा श्राद्ध
14 सितंबर- प्रतिपदा
15 सितंबर- द्वितीया
16 सितंबर– तृतीया
17 सितंबर- चतुर्थी
18 सितंबर- पंचमी, महा भरणी
19 सितंबर- षष्ठी
20 अक्टूबर- सप्तमी
21 अक्टूबर- अष्टमी
22 अक्टूबर- नवमी
23 अक्टूबर- दशमी
24 अक्टूबर- एकादशी
25 अक्टूबर- द्वादशी,
26 अक्टूबर- त्रयोदशी
27 चतुर्दशी- मघा श्राद्ध,
28 अक्टूबर- सर्वपित्र अमावस्या


श्राद्ध विधि::श्राद्ध वाले दिन सुबह उठकर स्नान कर देव स्थान व पितृ स्थान को गाय के गोबर से लिपकर व गंगाजल से पवित्र कर लें। महिलाएं शुद्ध होकर पितरों के लिए भोजन बनाने की तैयारी करें। इसके बाद ब्राहम्ण को घर पर बुलाकर या मंदिर में पितरों की पूजा और तर्पण का कार्य कराएं। आप चाहें तो ये काम खुद भी कर सकते हैं। पितरों के समक्ष अग्नि में गाय का दूध, दही, घी और खीर अर्पित करें। उसके बाद पितरों के लिए बनाए गए भोजन के चार ग्रास निकालें जिसमें एक हिस्सा गाय, एक कुत्ते, एक कौए और एक अतिथि के लिए रखें। गाय, कुत्ते और कौए को भोजन डालने के बाद ब्राहम्ण को आदरपूर्वक भोजन कराएं, उन्हें वस्त्र और दक्षिणा दें। ब्राहम्ण में आपका दामाद या भतीजा भी हो सकता है। यदि कोई व्यक्ति किसी कारणों से बड़ा श्राद्ध नहीं कर सकता तो उसे पूर्ण श्रद्धा के साथ अपने सामर्थ्य अनुसार उपलब्ध अन्न, साग-पात-फल और दक्षिणा किसी ब्राह्मण को आदर भाव से दे देनी चाहिए।


इन बातों का रखें ध्यान….
1.श्राद्ध कर्म या तर्पण करते समय चांदी के बर्तन का उपयोग करना चाहिए। पितरों को अर्घ्य देने के लिए, पिण्ड दान करने के लिए और ब्राह्मणों के भोजन के लिए चांदी के बर्तन श्रेष्ठ माने गए हैं। अगर चांदी के बर्तन नहीं है तो कांसे या तांबे के बर्तन का उपयोग कर सकते हैं। अगर ये भी नहीं है तो पत्तल पर खाना खिला सकते हैं।


2.श्राद्ध कर्म के लिए गाय का दूध और गाय के दूध से बने घी, दही का उपयोग करना चाहिए। पितरों को धूप देते समय व्यक्ति को सीधे जमीन पर बैठना नहीं चाहिए। रेशमी, कंबल, ऊन, लकड़ी या कुश के आसन पर बैठकर ही श्राद्ध कर्म करना चाहिए।


3.पितृ पक्ष में ब्राह्मणों और जरूरतमंद लोगों को भोजन कराते समय ये नहीं पूछना चाहिए कि खाना कैसा बना है। ब्राह्मणों को शांति से भोजन कराना चाहिए। मान्यता है कि खाते समय जब तक ब्राह्मण मौन रहते हैं तब तक पितर देवता भी भोजन ग्रहण करते हैं।


4.श्राद्ध पक्ष में अगर कोई जरूरतमंद व्यक्ति दान लेने घर आता है तो उसे खाली हाथ नहीं जाने देना चाहिए। उसे खाना या धन का दान अवश्य करें। ब्राह्मण को भोजन कराने के बाद धन का दान करें और पूरे आदर-सम्मान के साथ उन्हें विदा करना चाहिए।


5.पितृ पक्ष में क्लेश नहीं करना चाहिए। पति-पत्नी और परिवार के सभी सदस्यों को प्रेम से रहना चाहिए। जिन घरों में अशांति होती हैं, वहां पितरों की कृपा नहीं होती है।


श्राद्ध पक्ष के दिनों में इस मंत्र का करें जाप…..
।।ऊॅं नमो भगवते वासुदेवाय।। जिस दिन श्राद्ध हो उस दिन श्राद्ध की शुरूआत और समापन में इस मंत्र का जाप करें- ।।


देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्यन एव च। नमः स्वा्हायै स्व धायै नित्ययमेव भवन्युव त।।


रिपोर्टर:- अंकित गुप्ता