यहाँ का जल जीवन देता नही जीवन लेता है - सक्षम अधिकारी मौन


 


इटावा(भर्थना/ कुनैठी):- सबका साथ सबका विकास का सिद्धांत भर्थना के कुनैठी गांव में लागू नही होता। आपके राष्ट्रीय अभियान "हर घर में स्वच्छ जल" का सपना इस ग्राम में अधूरा। क्या अंधे या बहरे हो गये है सभी सम्बंधित आला अधिकारी या उन सबकी मानवीय संवेदनाये भी शून्य हो गई है। स्वतंत्र भारत के 70 साल पूरे होने के बाद भी आज शासन प्रशासन के अधिकारियों की उपेक्षा व नेताओ के झूठे खोखले वादों का शिकार हुआ भर्थना क्षेत्र का कुनैठी ग्राम आज 21 वी सदी के पोलियो मुक्त भारत मे फ्लोराइड के पानी मे बढ़े स्तर की वजह से विकलांगता का कड़वा दंश झेल रहा है और अपने नौनिहालों को मूक होकर मौत के मुह में जाते हुये बेहद दुखी मन से बस रोज ही बेबस होकर देख रहा है। मामला है कुनैठी (बसैली सादिकपुर) कुनैठी गाँव का जहाँ एक ही परिवार के 5 सगे भाई गांव का प्रदूषित फ्लोराइड युक्त जल पीने से विकलांग हो चुके है उनकी पैरों की हड्डियां टेडी हो गई है। इसी ग्रामवासी राजकुमार का 12 वर्षीय पुत्र अंकित जो उनके बुढ़ापे का सहारा था आज खुद ही बेसहारा होकर पूर्ण विकलांग हो गया है व अब वह हमेशा दो डंडों के सहारे ही चल पाता है एक पिता के लिये इससे बड़ा दुख क्या होगा इस गांव की ही एक पीड़ित महिला सहित गर्भवती महिलाओं को भी अब अपने बच्चों की चिंता हमेशा सताती रहती है।


ग्राम का जिसमे कई परिवारों के नौनिहाल व परिवारीजन फ्लोराइड के जहर से पिछले दो तीन दशकों से पीड़ित है। माननीय में पिछली सरकारों की बात नही करता टंकी न बनने का जो भी कारण रहा हो कि, इनकी समस्या आज तक हल नही हुई लेकिन अब इन लाचार गांव वालों को मोदी जी व योगी जी की सरकार से उम्मीद जगी है कि आपकी सरकार शायद इस तरह की उपेक्षा की पुनरावर्त्ति अब नही होगी। क्यों की उनके अनुसार आपके माननीय सांसद जी को इस गांव ने लोकसभा चुनाव में वोट भी दिये है। और फिर वोट दिए भी हो या नही फर्क इस बात से नही पड़ना चाहिये बात तो यह है कि अरबो रुपयों के चंद्रयान से चांद छू लेने वाला भारत एक गांव में स्वच्छ पीने के पानी की एक अदद टंकी पिछले कई दशकों से इस गांव को नही दे पा रहा है। और मजे की बात यह है कि जिन गांवों में पानी की गम्भीर समस्या नही है वहां टँकी बन गई है लेकिन इस गांव की पानी की टंकी के नक्शे में भ्रस्टाचार का दीमक आज तक किस अधिकारी ने लगा रखा है यह एक गम्भीर जांच का विषय है और मानवीय मूल्यों की उपेक्षा की एक पराकाष्ठा भी। 


इस क्षेत्र के और भी 10 गांव है खतरनाक फ्लोराइड की चपेट में अब गांव का दुर्गन्धयुक्त पानी पालतू पशु भी नही पीते है। अब यह देखना है कि कौन सा अधिकारी या नेता जलभागीरथ बनकर इन लाचार गांव वालों की प्यास बुझाने में मदद करता है। 


विशेष रिपोर्ट:- डॉ आशीष त्रिपाठी