राजाजी टाईगर रिजर्व द्वारा यमकेश्वर के जनमानस पर काला कानून थोपने की तैयारी


 


उत्तराखंड:- उत्तराखंड में वन कानूनो के कारण पहले ही बहुत से गाँव विकास से कोसो दूर है, और मूलभूत सुविधाओ से बंचित है, इसी कड़ी में अगर बात की जाय राजा जी टाईगर रिर्जव क्षेत्र की सीमा पर लगे गाँव जो आज भी वन नियमों के दंश को झेल रहे हैं, अब उनको औऱ भी कड़ी जंजीरो में बांधने की कवायाद चल रही है।


इस संबंध में कार्यायलB निदेशक वन संरक्षक, राजा जी टाईगर रिजर्व  देहरादून उत्तराखंड  के पत्रांक 647/1-13 दिनांक 19 अगस्त 2019 के द्वारा कार्यालय आदेश जारी किया है। उक्त आदेश के अनुसार प्रदेश के राष्ट्रीय पार्कों/अभयारण्यों पर इको सेंसेटिव जोन घोषित किये जाने के सम्बंध में राजाजी टाईगर रिजर्व की सीमा में लगे क्षेत्रो में ईको सेंसटिव ज़ोन का निर्धारण किया जाना है।


अतः जी टाईगर रिजर्व की सीमा में लगे क्षेत्रो में ईको सेंसटिव ज़ोन का निर्धारण के सम्बंध में जन सुनवाई की तिथि निर्धारित की गयी है। उक्त आदेश के अनुसार जन सुनवाई  31 अगस्त 2019 को चौरासी कुटिया ऋषिकेश लक्ष्मणझूला में 11 बजे होनी सुनिश्चित की गई है। 


इस आदेश में यमकेश्वर क्षेत्र के इन गाँवो के निवासियों को जन सुनवाई हेतु निमंत्रित किया गया है।  जिसमे सिमलडण्डी, खैरगई, मौन, गुदानू, शंकराचार्य आश्रम, स्वर्गराश्रम, गोहरी घाट, जौंक, लक्ष्मणझूला, खरगोसा, भौन, कुठार, नीलकंठ, तौली, पुंडरासू, भादसी, मराल, सिमलखेत, रत्तापानी, करौंदी, मालासेरा, सिरासू, कोटा, धोतियां धूनार गांव, फूलचट्टी, पटना, हलदोगी  को के ग्राम प्रधानों को सूचित करने हेतु कहा गया है। 


यमकेश्वर के लगभग एक तिहाई क्षेत्र ही भले इसमे आ रहे हो लेकिन यह पूरे यमकेश्वर पर इको सेंसिटिव  जोन के नियम लागू करके कुठाराघात करना है।।क्योंकि पूरा यमकेश्वर ऋषिकेश हरिद्वार पर निर्भर है और इन शहरों में जाने के लिये हमें इन क्षेत्रो से गुजरना पड़ेगा।  विभाग ने एक मौका दिया है इस काला कानून को रोकने के लिये, अतः इसका पुरजोर विरोध एक स्वर में करना हमारी प्राथमिकता रहेगी। इको सेंसेटिव जोन बन जाने से हमारे ग्रामीण क्षेत्र के लोग नियमो के आगे पूरे गुलाम हो जायेगे। घास पत्ती, चारा, लकड़ी, निर्माण से सम्बधी सभी प्रकार के कामों के लिए पार्क से परमिशन लेनी होगो, औऱ वन कानून एवं इको जोन के जो कानून होते हैं वह हिटलरशाही के समान होते हैं, यँहा से परमिशन मिल जाय यह कल्पना करना भी गुनाहों की श्रेणी में आयेगा। 


यमकेश्वर वैसे भी सबसे पिछड़ा हुआ विकासखंड है, औऱ अब इसे पूरी तरह गर्त में डालने के लिए टाइगर रिजर्व इको सेंसेटिव जोन बनाने की कवायद शुरू होने जा रही है। हम अपने जल जंगल जमीन से वंचित हो जाएंगे, हम अपने खेतों में हम अपने गाँव के जंगलों से ईंधन लाने के लिये वंचित हो जायेगे, विकास के तमाम कार्य अवरूद्ध ही नही बल्कि सदैव के लिए बंद हो जायेंगे। सड़के नही बनेगी, गाँव के विकास के द्वार बंद हो जायेगे। इको सेंसेटिव जोन से ताबूत की कील हमारे यमकेश्वर क्षेत्र में ठोक दी जाएगी। 1983- 84 में राजाजी नेशनल पार्क के कारण गोहरी रेंज की सीमा में सटे गांव आज भी उस भूल का दंश झेल रहे हैं, आज कौड़िया किमसार मोटर मार्ग इसका प्रबल उदहारण है। यदि हम लोग फिर मूकदर्शक बन कर रहेंगे तो आने वाली पीढियां हमको कभी माफ नही करेगी। 


मैं पूरे यमकेश्वर वासियों से अपील करता हूँ कि अब वो पुरानी गलतियों को मत दोहराना।  इसे इको सेसेटिव जोन बनने से रोकने के लिये हर संभव प्रयास के लिए तत्तपर रहना। आप राजनीतिक दल, वर्ग भेद, क्षेत्रवाद,व्यक्तिवाद को छोड़कर सिर्फ अपनी आने वाली सन्तति के लिए अपने यमकेश्वर के लिए इस इको जोन घोषित होने से रोकने के लिए एक आवाज में इसका पुर जोर विरोध करना है। आप सभी लोग एक दिन (31 अगस्त 2019) के लिये  चौरासी कुटिया में आकर अपनी एकजुटता का पर्याय बनकर इस काले कानून का विरोध करना है, अगर हमने इसका विरोध नही किया तो यह समझ लेना कि हमने खुद के लिए काले पानी की सजा या खुद के लिये अपने ही घर मे फाँसी लगा ली है। अगर यमकेश्वर को इससे बचाना है तो फिर सभी लोग अपने स्तर से जन सुनवाईन के दौरान पुर जोर ढंग से तर्क युक्त ढंग से विरोध करना। मैं स्वयं इसके विरोध में उस दिन उपस्थित रहूँगा। अब एक ही नारा होगा।


"इको सेसेटिव जोन का हो बहिष्कार यमकेश्वर की धरती पर यमकेश्वर वासियो का हो अधिकार"।


रिपोर्टर:- अंकित गुप्ता